Thursday, October 2, 2008

कौशल्या को अफसोस, राम जैसी यों न हुई संतान


नदीम अंसारी/अरुण सरीन
कभी बुजुर्गों से ही किसी भी घर का रुतबा तय होता था। अफसोस अब ऐसे तमाम परिवार हैं, जिनमें खुद बुजुर्गों का ही रुतबा खत्म होता जा रहा है। शायद इसीलिए वृद्धाश्रमों और ओल्डएज होम्स में तेजी से ऐसे बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है, जो भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद बेसहारा हैं। विश्व वृद्धजन दिवस पर लुधियाना स्थित स्वामी विवेकानंद वृद्धाश्रम का मंजर देखकर कुछ ऐसा ही अहसास हुआ। इसमें लंच के टकटकी लगाए बुजुर्ग औरत कौशल्या कुछ सोच रही है। शायद उनके जहन में यही सवाल कौंध रहा था कि उन्हें कौशल्या जैसा नाम तो मिला, लेकिन भगवान राम जैसे आज्ञाकारी संतान उनकी कोख से यों पैदा हुई?
बातचीत का सिलसिला शुरू करने की मंशा से जैसे ही मालूम किया कि आपकी कितनी औलाद...बस वह मानो फट पड़ीं। कमोबेश चीखते हुए बोलीं 'गोली मारो औलाद को..` और आगे मानो उनकी भीगी आंखों ने सब कुछ कह दिया। यह उन पर पड़ी बुरे की मार थी, लेकिन मन को यकीन नहीं हो रहा था कि औलाद नाम से किसी मां को भी इतनी नफरत हो सकती है। बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से पंजाब आई तीन बेटों और दो बेटियों वाली इस मां का इलजाम है कि औलाद ने उसको ठुकरा दिया। बस कभी-कभार छोटी बेटी मिलने जाती है।
इसी आश्रम में रहने वाले बुजुर्ग ज्ञानप्रकाश अब भी ज्ञान का प्रकाश बांट रहे हैं। जिंदगी भर खून-पसीने की कमाई जोड़ी, मकान बनाकर चार बेटों को बांट दिया। पेंशन सबसे छोटे बेटे की लड़की का ब्याह करने में लगा दी, योंकि वह अनाथ हो गई थी। वह आह भरकर कहते हैं कि जायदाद की खातिर औलाद ने ही बेघर कर दिया। इसके बावजूद औलाद की लंबी उम्र की दुआ करते वो नई पीढ़ी को यही संदेश देते हैं कि अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। कोई आपके साथ भले ही बुरा करे, अच्छाई से उसका जवाब दो। चश्मे के पीछे से झांकती हरबंस लाल की बू़ढी आंखों को अब इसी आश्रम से आस है। दो कमाऊ बेटों के रहते पहले पत्नी के साथ वृद्धाश्रम में रहे, पत्नी की मौत के बाद घर लौटे तो फिर एक बेटे की मौत हो गई, दूसरे बेटे ने सहारा नहीं दिया तो इसी 'पुराने घर` में लौट आए।
इसी वृद्धाश्रम में रह रही कृष्णावंती को इकलौते बेटे से बड़ी आस थी कि वह बु़ढापे का सहारा बनेगा, मगर इस उम्र में यह बुजुर्ग औरत बेसहारा है। यहां रहने वाली सुहाग रानी और शांति जैसी ज्यादातर बुजुर्ग औरतों की एक जगजाहिर शिकायत यह भी है कि बहुआें ने उनके बेटों को बिगाड़ा और बेघर करा दिया।
साभार - अमर उजाला

1 comment:

vinodkmusan said...

नदीम भाई इस विषय पर कुछ लिखना चाहता था, लेकिन उस दिन अमर उजाला में आपका लेख पढ़ा तो लगा यही तो था वह जो मैं लिखना चाहता था, आपसे निवेदन है अखबारी दुनिया से हटकर भी कुछ लिखने का कष्ट करें, मेरे ब्लाग पर हमेशा आपका स्वागत है। मैं जानता हूं आपके पास बहुत कुछ है जिसे लोग पढ़ना पसंद करेंगे।