
1999 में जब हमारे प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान यात्रा केदौरान वहां केप्रधानमंत्री नवाज शरीफ से गले मिल रहे थे, ठीक उसी दौरान पाकिस्तानी फौजें कारगिल की पहाड़ियों पर चढ़ाई कर रही थी। दोस्ती की आड़ में पाकिस्तान ने जो खंजर हमारी पीठ में घोंपा था, उसे मैंने श्री वाजपेयी जी के शब्दों में कुछ यूं बयां किया...।
तेरी दोस्ती का ऐसा कायल हुआ हूं मैं
खुद अपनी ही जमीं पर घायल हुआ हूं मैं
तेरी वफा की ख्वाहिश वर्षों तलक रही
अब तो इंतहा की भी हद गुजर चुकी
आज भरे बाजार में रुसवा हुआ हूं मैं
खुद अपनी ही जमीं पर घायल हुआ हूं मैं
तू अपनी जफा पर कभी न हुआ शर्मिंदा
बस ये देखते ही देखते हम रह गए
व त का देखो कैसा हुआ तसव्वुर
तेरी दोस्ती की ख्वाहिश में बह गया हूं मैं
सुना था मौसम की तरह दोस्त भी बदल जाते हैं
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
पर तू न बदला ऐ मेरे दोस्त
यही गम अपने दिल में लिए जाता हूं मैं
तेरी दोस्ती का ऐसा कायल हुआ हूं मैं
खुद अपनी ही जमीं पर घायल हुआ हूं मैं
यह कविता दयानंद ब्रिजेंद्रा स्वरूप महाविद्यालय, देहरादून (डीबीएस कालेज) की वार्षिक पत्रिका 'विज्ञानदा` वर्ष 1998-99 केअंक में प्रकाशित हो चुकी है। मैं उस व त बी.एससी तृतीय वर्ष का छात्र था, पहली दो लाइनें मेरे अजीज मित्र श्री अतुल भंडारी की हैं, जो उन्होंने बातों ही बातों में कह दी थीं। इसके लिए उन्हें धन्यवाद।)