Monday, May 10, 2010

9 हेक्टेअर भूमि में आकार ले रहा 'लघु भारत ’

देहरादून से योगेश भट्ïट
सात साल पहले शुरू की गई एक पहल आज पूरे विश्व पर्यावरण के लिए नजीर बन गई है। पर्यावरण को बचाने की इस मुहिम को सलाम।
इस बार अगर आप बदरीनाथ धाम आएं, तो यहां बद्रीश एकता वन जरूर जाएं। यह वन देश ही नहीं विश्व भर के लिए पर्यावरण संरक्षण की मिसाल है। आप एक पौधा लगाकर आस्था और पर्यावरण के समागम में भागीदारी कर सकेंगे। चाहे आप देश के किसी भी कोने से आए हों, इस वन में अपने प्रदेश के लिए स्थान पहले से तय मिलेगा। इसी आरक्षित स्थान पर आप अपने पूर्वजों, प्रियजनों या फिर यात्रा स्मृति में पौधा रोपकर बदरीधाम से रिश्तों की डोर जोड़ सकेंगे। आपके 'पौधे ’ की देखरेख का जिम्मा प्रदेश का वन विभाग उठाएगा।
सात साल पहले 2002 में की गई यह पहल अब अपने यौवन रूप में नजर आने लगी है। बदरीनाथ में माणा और बामणी गांव के सहयोग से देवदर्शनी के पास 9 हेक्टेअर भूमि पर इस योजना को आकार दिया गया है। यहां 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भूमि आरक्षित कर 'लघु भारत ’ का स्वरूप दिया गया है। फिलहाल इस वन में चार प्रजातियों की वंश वृद्धि हो रही हैं। इसमेें भोजपत्र, कैल, देवदार और जमनोई शामिल हैं। अभी तक 700 से अधिक वृक्ष तैयार हो चुके हैं।
अब तक योजना का प्रचार-प्रसार नहीं था, लेकिन आम लोगों के रुझान को देखते हुए इसे गंभीरता से लिया जा रहा है। इसी माह शुरू होने वाली चारधाम यात्रा के दौरान इस बद्रीश एकता वन का प्रचार करनेे की तैयारी है। प्रदेश सरकार भी विभिन्न मौकों पर इसका खास प्रचार कर रही है। प्रमुख वन संरक्षक डा. आरबीएस रावत इस योजना को लेकर खासे उत्साहित हैं। उनके अनुसार वन विभाग पर्यावरण संरक्षण की इस योजना पर पूरा फोकस है। योजना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना है।
साभार-अमर उजाला

Friday, May 7, 2010

आरती और सिमरन को न्याय चाहिए

आरती और सिमरन को न्याय चाहिए
आरती का दोषी सुरेंद्र कोली सिमरन का जन्मदाता

राजीव पांडेय
निठारी में नरपिशाचों का शिकार होकर छोटी सी उमर में जान गंवाने वाली आरती के साथ ही सिमरन को भी न्याय चाहिए। इन दोनों के एक ही कड़ी से जुड़े होने के बावजूद इनमें फर्क बस इतना है की निठारी का नरपिशाच सुरेंद्र कोली आरती का गुनहगार है तो सिमरन का जन्मदाता भी। सात साल में ही दुनिया से रुखसत हो चुकी मासूम आरती का मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो करीब इतने ही बरस की सिमरन का फैसला जनता की आदलत में। कोली को १२ मई को सजा सुनाई जानी है। यह तय है कि कोली के अमानवीय कृत्य के लिए न्यायालय उसे जो भी सजा देगा वह कम ही होगी। इसी पटाक्षेप के बाद सिमरन का सवाल उठेगा और तब समाज को यह ध्यान रखना होगा की सिमरन केसाथ कोई अन्याय न हो क्योंकि वह अपने पिता के गुनाह से अंजान है।
अल्मोड़ा के मंगरूखाल गांव में अपने घर के आंगन में आज भी मासूम सिमरन निश्छल और तनावमुक्त होकर घूमती है। उसको आज भी पता नहीं कि जिन हाथों को पकड़कर उसने पहली डग भरी थी वह हाथ उसी की तरह न जाने कितने मासूमों के खून से रंगे थे। वह इससे भी अंजान है कि यदि आपने और हमने उसका साथ नहीं दिया तो आगे की डगर कितनी भयावह हो सकती है। वह तो आज भी अपने पिता के इंतजार में है। सिमरन केअपने व्यक्तिगत जीवन में इन वर्षों में कोई बदलाव नहीं आया। उसकी दिनचर्या आज भी उसी तरह है जैसी निठारी कांड से पहले हुआ करती थी। इस कांड के बाद शुरुआती झंझावतों के बीच कुछ दिन स्कूल छूटा जरूर लेकिन अब वह फिर स्कूल जाने लगी है। इस बीच उसका परिवार पूरी तरह दरक चुका है। उसकी मां शांति केजीवन में आज अपने नाम से मेल खाती कोई चीज नहीं है। चार साल का छोटा भाई अभावों के कारण आए दिन बीमार रहता है। इन दिनों टाइफाइड से ग्रसित है। दादी कुंती को आज भी अपनी कोख पर विश्वास नहीं होता। सुरेंद्र के कृत्य की सजा उसका परिवार भुगत रहा है। करीब १९ मामलों में हत्या और बलात्कार केआरोपी कोली को सजा देना कानून की जिम्मेदारी है। दो मामलों में वह दोषी ठहराया जा चुका है। कई फैसले आने अभी बाकी हैं। अब बात आती है कोली के परिवार जैसे उन सभी परिवारों की जो नाहक सजा काट रहे हैं। जो समाज में केवल इसलिए बहिष्कृत कर दिए गए हैं कि उनके अपनों ने कोई गुनाह किया है। तय किया जाना चाहिए कि कोली और उसके परिवार की ही तरह अपनों के कृत्य का दंश झेल रहे लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा। निर्णय होना चाहिए कि सिमरन और उसकी ही तरह अन्य मासूमों पर उनके बाप की काली छाया कभी नहीं पड़ेगी। ऐसे परिवारों से आने वाले बच्चों को भी बेहतर जिंदगी मिले। यदि ऐसा नहीं हुआ तो आरती और सिमरन दोनों ही न्याय से वंचित रह जाएंगे। क्योंकि आरती भी सिमरन की ही तरह मासूम थी। इसलिए एक मासूम केसाथ हुए गुनाह कि सजा दूसरे मासूमों को नहीं मिलनी चाहिए। सिमरन को वह सब चीज मिलना चाहिए आरती को जो उसकेमाता-पिता देना चाहते थे बेहतर शिक्षा, बेहतर वातावरण और बेहतर भविष्य। इनपर सिमरन का आज भी उतना ही अधिकार है जितना सुरेंद्र केदोषी होने से पहले था। आरती का फैसला तो अदालत कर चुकी है। उसका गुनहागार दोषी ठहराया जा चुका है। १२ मई को उस नरभक्षी की सजा भी निर्धारित कर दी जाएगी। लेकिन सिमरन का मामला ताउम्र अब आपकी आदलत मेंं चलेगा बस ध्यान रहे कि कोई भी दलील नरपिशाच सुरेंद्र की वजह से इस मासूम के खिलाफ न जाए। यदि ऐसा हुआ तो यह समाज के न्याय पर एक धब्बा होगा।