Wednesday, June 26, 2013

मैं ‘पहाड़’ हूं, पीड़ा में हूं...

देहरादून/विनोद मुसान | अंतिम अपडेट 25 जून 2013 6:17 PM IST पर

uttarakhand disaster
मैं ‘पहाड़’ हूं, पीड़ा में हूं। यूं तो मेरी छाती पर कई बार छेणी-हथौड़े चले। जेसीबी और गोला-बारूद से भी मेरा सीना कई बार छलनी हुआ। मैं चुप रहा...।लेकिन, इस बार पीड़ा हो रही है। नए तरह के जख्म मिले हैं, जिनका दर्द मैंने कभी महसूस नहीं किया। मुझ पर लूट-खसोट और सीनाजोरी का आरोप लगा है। कैसे सहन करूं।मेरे बच्चे आज भी जब गांव-गदेरों को लांघकर रोजगार की तलाश में दूर देश जाते हैं, ‘पहाड़’ शब्द का सर्टिफिकेट उनको पंक्ति में आगे खड़ा कर देता है। फिर किसी और की कारस्तानी का इलजाम कैसे मैं अपने सिर ले लूं। कुछ बिगड़ैलों के कारण आज मेरा पूरा परिवार बदनाम हो रहा है।

यात्राकाल में आई विभीषिका में देशभर से आए तीर्थयात्री ही हताहत नहीं हुए हैं। जल प्रलय ने पहाड़ के सैकड़ों घरों के दीप भी बुझा दिए हैं। घाटियों में रहने वाले जो लोग बचे हैं, उनके सामने जीते-जी मरने जैसी स्थिति पैदा हो गई है।सड़क, संचार, बिजली-पानी ने तो साथ छोड़ा ही, अब राशन भी खत्म होने को है। ऊपर से कुछ लोगों की कारगुजारी के बाद लूट-खसोट के जो इलजाम पहाड़ के लोगों पर लग रहे हैं, उससे लोग सबसे ज्यादा आहत हैं।
केदारघाटी में आई विपदा के बाद कुछ यात्रियों द्वारा एक समुदाय विशेष पर लूट-पाट और मारपीट के आरोप लगाए जा रहे हैं। स्थानीय दुकानदारों पर रोटी-पानी और अन्य जरूरी चीजों के दाम ज्यादा वसूले जाने के आरोप लग रहे हैं।
इस हकीकत से एकदम मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। लेकिन, यह भी सत्य है पहाड़ ने अपना पेट काटकर कई लोगों की जिंदगी बचाई है। अभी तक शासन-प्रशासन ने लेकर सेना तक का पूरा ध्यान यात्रियों को सकुशल निकालने पर केंद्रित है।
कई-कई गांव भी आपदा का शिकार हुए हैं। जिनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा। वे बुरी स्थिति में हैं। उन्होंने इन हालात में भी मानव धर्म नहीं छोड़ा है। कई मुसाफिरों ने आपबीती में इस बात को स्वीकार किया, पहाड़ के लोग समय पर आसरा नहीं देते तो आज हम जिंदा न होते।
माटी का ढेर था बिखर गया, फिर जोड़ लेंगे...
यहां तो जिंदगी का पूरा ताना-बाना ही ताक पर लग गया है। तिनका-तिनका जोड़ जिन घरौदों को खड़ा किया, आधे उनमें से ध्वस्त हो गए, जो बचे हैं अब उनमें जिंदगी कितने दिन महफूज रहेगी, कोई नहीं जनता। माटी का ढेर था बिखर गया, फिर जोड़ लेंगे। लेकिन जिंदगीभर जिस साख के लिए जाने जाते रहे, उस पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं। यह ठीक नहीं है।
चंद लोगों ने ऐसा किया, लेकिन हकीकत यही है ज्यादातर लोगों ने अपना पेट काटकर आपदा में फंसे मुसाफिरों को बचाया है। जबकि अब उनके सामने खुद रोटी का संकट खड़ा है। जब हकीकत सामने आएगी सब जान जाएंगे, पहाड़ का आदमी देना जानता है, छिनना नहीं।

हमने कहा, चलो पुलिस के पास तो बंगले झांकने लगे

दो दिन पहले फोन पर एक मित्र ने उत्तरकाशी बाजार का एक किस्सा सुनाया। यहां यात्रा रूट पर स्थानीय लोगों द्वारा कई राहत कैंप लगाए गए हैं। ऐसे ही एक राहत कैंप में एक महिला-पुरूष ने स्थानीय लोगों पर उनके जेवर उतरवाने और बदसलूकी करने का आरोप लगाया।
मौके पर मौजूद 15-20 नौजवानों की मुट्ठियां तन गई। पहले तो युवकों ने कहा, चलो हम आपके साथ चलते है, किसने आपको लूटा है। लेकिन दंपति ने मना कर दिया। फिर लोग उन्हें लेकर थाने चलने लगे। थाने के बात सुनकर दंपति बंगले झांकने लगे और धीरे-धीरे भीड़ में इधर-उधर हो गए।