प्रिय ब्लागर मित्रों
आप सभी को मेरा नमस्कार...
खासकर श्री मृत्युंजय भाई साहब को सादर प्रणाम, जिन्होंने मुझे ब्लाग की इस अनोखी दुनिया से रू-ब-रू कराया। दफ्तर का काम खत्म करने के बाद घर लौटा तो कुछ लिखने की इच्छा हुई। सोचा आज उन दोस्तों के नाम ही एक खुला पत्र लिखा जाए, जो दूर रहते हुए भी दिल के करीब हैं।
मैं जनता हूं, आप सब भी मेरी तरह अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हो। या यूं कहा जाए की उलझे हो। योंकि मस्ती आजकल की भाग-दाै़ड भरी जिंदगी में किसी नसीब वाले को ही नसीब होती है। फिर भी निराश होने की जरूरत नहीं है, इसी का नाम जीवन है। मैं अपने जीवन के तीस साल पूरे करने के बाद 31वें साल को अपनी तरह से इंज्वाय कर रहा हूं। जाहिर है मेरे मित्रों में भी अधिक संख्या उन लोगों की है, जो उम्र के इसी दौर से गुजर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कैरियर के लिए यही दिन जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण दिन होते हैं। मेरी तरह आप सब भी आगे बढ़ने के लिए जद् दोजहद कर रहे होंगे।
कुछ मित्र थे जो पहले ब्लाग की दुनिया में निरंतरता बनाए हुए थे। लेकिन पिछले कुछ महिनों से वे शांत हैं। समझ सकता हूं, आप सब पहले से ज्यादा व्यस्त हो गए हो, लेकिन मुझे लगता है, समाज के उत्थान को चिट् ठाजगत को आप लोगों की जरूरत है। आप सौ कराे़ड लोगों में वह चुनिंदा लोग हैं, जिन्हें भगवान ने लेखन कार्य की शि त दी है। चिट् ठाकारों के लिखने से यूं तो यह दुनिया बदलने वाली नहीं है, लेकिन हमारा प्रयास ही हमारा प्रण है। हम जूझेंगे, लिखेंगे और चेतना की नई ज्योत को हमेशा जलाकर रखने की कोशिश करेंगे। हम शत-प्रतिशत नहीं तो दस-प्रतिशत तो कामयाब होंगे।
आदरणीय मृत्युंजय जी सबसे बड़ी शिकायत मेरी आप से है। आपके ब्लाग लेखन से ही हमें इस दुनिया में झांकने का मौका मिला। आपने हमें बुनियादी बातें भी समझाई। अब आप ही चुप बैठ गए। मैं जनता हूं अब आपके कार्यक्षेत्र का विस्तार हो गया है, बड़ी जिम्मेदारी आपकेकंधों पर हैं। लेकिन मेरा मानना है, आप अगर समय निकालेंगे तो जरूर कुछ नया पढ़ने को मिलेगा। यह मेरी ही नहीं अधिकतर ब्लागर की शिकायत है।
वेद जी आप तो नोयडा जाकर, जैसे कहीं खो ही गए। आपकी लेखनी के हम हमेशा से कायल रहे हैं। कभी-कभार समय निकालकर कर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करा दिया किजिए। यही शिकायत मेरी बड़े भाई ओम प्रकाश तिवारी, रंजन जी, थपलियाल जी, भाटिया जी से भी है। लगता है जालंधर से जाने केबाद जैसे सब कहीं खो गए हैं। रजनी जी आप तो शादी के बाद से ही ब्लाग की दुनिया से गायब हैं। अब लौट आइए। बहुत दिन हुए, आपकी कोई नई कविता नहीं पढ़ी।
...और अबरार भाई आप कहां हो, आपकी बहुत नहीं लेकिन कुछ नजमे पढ़ी, यकिन मानो बहुत दर्द है आपकी रचनाआें में। बस जरूरत है तो निरंतरता की। उम्मीद है आप जल्दी दस्तक दोगे।
अनिल भारद्वाज जी और मनीष जी लंबे समय से आप भी कहीं दिखाई नहीं दिए। भड़ासी तो बन गए, लेकिन दिल में दबी भड़ास को कब बाहर निकालोगे। फुर्सत केक्षण निकालकर कुछ नया जरूर लिखें, ऐसा मेरा अनुरोध है।
अंत में,
मैं अपने सभी मित्रों के सुखद भविष्य की कामना करते हुए यह चिट् ठा समाप्त कर रहा हूं। भूल-चूक केलिए माफी के साथ आपका स्नेही
विनोद के मुसान
Thursday, July 9, 2009
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