

विनोद के मुसान
ईद उल फितर के दिन श्रीनगर के लाल चौक पर जो कुछ घटा, उसे देखकर किसी भी सच्चे हिंदुस्तानी का खून खौल सकता है। लाल चौक पर खड़े एतिहासिक घंटाघर पर एक बारफिर पाकिस्तान का झंडा फहराया गया। कई सरकारी बिल्डिंगों को आग के हवाले कर दिया गया। वाहन फूंके गए और तोड़फोड़ की गई। मुबारक पर्व पर जितना हो सकता था सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। इससे ठीक पहले दहशतदर्गी फैलाने वाले यह सभी लोग ईद की नमाज अदा कर लौटे थे।
इस देश में रहकर दूसरे देश का झंडा फहराना, जिस थाली में खाना उसी में छेद करने जैसा है। अलगाववादी कुछ लोग कश्मीर की जनता को बरगला कर अपने नाकाम मनसूबों को अंजाम देने में लगे हैं। जिन नौजवानों के हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं, उनके हाथों में सैन्य बलों को मारने के लिए ईंट और पत्थर दिए जा रहे हैं। मजहब के नाम पर उनकी जवानी को ऐसे अंधकार में धकेलने का काम किया जा रहा है, जहां से शायद ही वह कभी लौटकर वापस आ सकें।
देश का कोई नेता इन हालात को सुलझाने का प्रयास तक करता दिखाई नहीं दे रहा है। धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले और छोटी-छोटी बातों पर धरना प्रदर्शन करने वाले नेताओं की जुबान पर भी ऐसे मौके पर ताला लग जाता है। मीडिया की अपनी सीमाएं हैं। देश में अमन और शांति कायम रखने के लिए लाल चौक के उन दृश्यों को न दिखाने और मामूली कवरेज उस अघोषित रणनीति का हिस्सा होता है, जो लोकतांत्रिक देश की अखंडता के लिए जरूरी भी है।
कश्मीर में रोज खून की होली खेली जा रही है, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। आम जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई इस तंत्र को यथावत रखने में लुटाई जा रही है, लेकिन हश्र सबके सामने है। विकास की बात तो दूर, सर्वविनाश करने वाले लोगों को रोका तक नहीं जा रहा है। सब जानते हैं मुठ्ठीभर दहशतगर्द नेता इस माहौल के लिए जिम्मेदार हैं।
उन पर लगाम लगाई जानी चाहिए। साफ होना चाहिए, वे जिस थाली में रोटी खा रहे हैं, उसमें छेद करने की जुर्रत न करें। नहीं तो अपना काला मुंह वहीं जाकर करें, जिसका गुणगान यहां रहकर कर रहे हैं।
6 comments:
sam sam sam sam
जनाब ये सब पाक की साजिश तो नहीं हो सकता, जब तक हम इन दंगो को एक जातीय दंगा न समझ कर एक आम दंगा नहीं मानेंगे तब कट ये सब नहीं रोका जा सकता
एक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
भाई साहब आपने जनता की करनी तो लिख दी पर सेना की करतूत लिखना भूल गए। मैं आपके देशभक्ति के जज्बे का सम्मान करता हूं। लेकिन कुछ लोग देशभक्ति के नाम पर जनता को कैसे रौंद रहे हैं यह तसवीर भी हमें जम्मू-कश्मीर से ही देखने को मिलती है। जब आंखों के सामने बहन का बलात्कार होता है। दोस्त की हत्या हेाती है। मां-बाप लाठी डंडों की मार से कराह रहे होते हैं तो बंदूक या पत्थर ही अंतिम विकल्प होता है।
rajeev agar बंदूक या पत्थर ही अंतिम विकल्प होता to aaj pura DESH khand-khand ho gaya hota. bura mat manana bhai tum mude ko galat trak par le ja rahe ho.
kya tum ise sahi mante ho, koi tumhare hi ghar par rahkar dusre desh ka JANDA pharaye.
HINDUSTAAN MEI RAHKAR PAKISTAN JINDABAAD KAHNE KO HUM GALAT NAHI KAHTE.PAR KOI HAMRI DARTI PAR RAH KE HINDUSTAN MURDABAD BOLE YE HAME MANJOOR NAHI.
HINDUSTAN JINDABAAAAAAAAAAAAAD
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