Friday, July 25, 2008

अपनी बात

मैं उन लोगों से सख्त नफरत करता हूं, जो बनावटी दुनिया में जीने में विश्वास रखते हैं, झूठ बोलते हैं और दूसरों की टांग खिंचकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। ऐसे लोग अकसर अपनी ही बात से मुकर जाते हैं, उन्हें सिर्फ दूसरों की गलतियां दिखाई देती हैं, अपनी तमाम मूर्खताआें पर वह किसी भोलेपन की चादर में ओढ दूसरों केसामने नासमझी को ढोंग करते हैं। खुद अगर कोई नामसझी करें तो वह उनका भोलापन होता है और दूसरा कोई करे तो वह बड़ी गलती हो जाती है। ऐसे लोगों को जो काम आता है, वह बड़ा काम होता है और जो उन्हें नहीं आता वह सिर्फ काम होता है। या कई बार कुछ होता ही नहीं है। वे तमाम बातें जानते हुए भी दूसरों के सामने नासमझ बनने का नाटक करते हैं और व त आने पर पलटवार करते हैं। ऐसे व्यि तयों की नजर में कोई भी व्यि त तब तक अच्छा होता है, जब तक अमुक व्यि त के जरिए उनके निहित स्वार्थों की पूर्ति होती है।
इन सब बातों के बावजूद मेरा मानना है कि ऐसे व्यि त भले ही दूसरे व्यि तयों को मानसिक तनाव दें, लेकिन वह खुद भी कभी चैन से नहीं रहते। वह हमेशा एक डरा-डरा सा जीवन जीते हैं, परेशान रहते हैं और दुनिया को मूर्ख समझने की मूर्खता कर खुद सबसे बड़े मुर्ख बन रहे होते हैं।
एक मित्र को सलाहऱ्यर्थात में जिओ, अपनी कमियों को स्वीकार करते हुए उन पर अमल करो, योंकि मैं जनता हूं तुम अंदर से इतने बुरे भी नहीं।

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