Tuesday, March 17, 2009

लल्लन टॉप चैनल

अशोक मिश्र
शाम को थका-मांदा घर पहुंचकर टीवी ऑन किया। चैनल 'लल्लन टॉप` पर खबरें प्रसारित हो रही थीं। समाचार वाचिका भानुमती की सुरीली आवाज गूंज रही थी, 'लल्लन टॉप` की खास पेशकश...दौलतपुर के एक गांव में गाय ने एक साथ तीन बछियों को जन्म दिया,...दौलतपुर की धरती ने आज उस समय इतिहास रच दिया, जब दौलतपुर के एक गांव रमईपुरवा में एक गाय ने तीन बछियों को एक साथ जन्म दिया। तीनों बछिया स्वस्थ हैं। उनकी देखभाल जिला मुख्यालय से आई डॉ टरों की एक टीम कर रही है। कैमरामैन के साथ हमारे संवाददाता चंद्रबख्श मौके पर पहुंच चुके हैं। हम आपको फिर याद दिला दें कि दौलतपुर के गांव रमईपुरवा में बलिराम की गाय कबरी ने एक साथ तीन बछियों को जन्म दिया है...आइए, हम अपने संवाददाता चंद्रबख्श जी से पूछते हैं कि वहां का या माहौल है?`
स्क्रीन पर माइक संभाले चंद्रबख्श जी नजर आते हैं। भानुमती कहती है, 'चंद्रबख्श जी, आप हमारे दर्शकों को बताएं कि वहां का या माहौल है? तीन बछियों को जन्म देने के बाद गाय कैसा महसूस कर रही है?` 
चंद्रबख्श समाचार आगे बढ़ाते हैं, 'भानुमती, दौलतपुर के लोग सुबह से ही पटाखे फाड रहे हैं। गाय भी काफी खुश है। आप देख सकते हैं कि गाय इस समय हरा चारा खा रही है। उसके चेहरे पर प्रसन्नता और गर्व की झलक साफ देखी जा सकती है। उसने दौलतपुर के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जो जाेडा है। आइए, बात करते हैं गाय के मालिक बलिराम जी से।,`
स्क्रीन पर झ कास कुर्ता-पायजामा पहने बलिराम के साथ चंद्रबख्श प्रकट होते हैं। चंद्रबख्श पूछते हैं, 'बलिराम जी, या आपको पहले से उम्मीद थी कि आपकी गाय तीन बछियों को जन्म देगी?` बलिराम जी मंूछों पर ताव देते हुए कहते हैं, 'तीस साल पहले कबरी की दादी ने भी एक साथ तीन बछियों को जन्म दिया था। इसकी मां भूरी ने भी दो बछड़ों को जन्म दिया था। हमें पूरी आशा थी कि यह भी कोई उपलब्धि जरूर हासिल करेगी।`
इसके बाद कैमरा बलिराम के चेहरे से पैन होता हुआ कबरी तक जाता है। कुछ देर तक चारा खाती कबरी और गांव में नाचती-गाती भीड़ को दिखाकर चंद्रबख्श विदा हो जाते हैं। स्क्रीन पर भानुमती का चेहरा नमूदार होता है। वह कहती हैं, 'हम अपने दर्शकों को ले चलते हैं दिल्ली स्टूडियो, जहां मौजूद हैं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एमएनए सुब्रमण्यम राधास्वामी जी। चलिए, उनसे पूछते हैं कि इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर या प्रभाव पड़ेगा?` राधास्वामी पहले खखारकर गला साफ करते हैं, फिर बोलते हैं, 'मैं समझता हूं कि इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। हां, बलिराम की विकास दर देश के विकास दर से थाे़डा ज्यादा रहेगी।` भानुमती एक बे्रक लेकर स्क्रीन से गायब हो जाती है। मैं भी टीवी बंद कर चादर आे़ढकर सो जाता हूं। 
(अशोक जी का यह लेख 'अमर उजाला` 16 मार्च, 2009 के अंक में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है।)
साभार-अमर उजाला 

1 comment:

KK Yadav said...

Nice one....Shabdon men dhar hai.
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गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!