विनोद के मुसान
टीवी न्यूज चैनल की स्क्रीन से खबरें सिरे से गायब हैं। अपने को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने वाले तमाम न्यूज चैनलों के पास खबरों का ऐसा टोटा है कि वे हांफते फिर रहे हैं। फिर भी प्रतिस्प्रर्धा की अंधी दाै़ड में बेशर्म होकर अपने को सर्वश्रेष्ठ कहलाने से नहीं हिचकते हैं।
लोग सुबह उठते हैं, ताजातरीन होकर। टीवी का स्विच ऑन करते हैं, यह सोचकर की देश दुनिया की खबरों से रू-ब-रू हो सकें। लेकिन, इससे इतर उन्हें जानकारी मिलती है, बीती रात कौन से सीरियल में या घटित हुआ। नच बलिए में किस ने कौन से लटके-झटके दिखाए और हंसी के फूहड़ शो में पूरा शो खत्म हो जाने केबाद भी किसी को हंसी नहीं आई। छोटे उस्ताद में गंगू बाई ने किसके घर में झाड़ू लगाई। कौन से हिरो-हिरोइन ने इन दिनों किस कंपनी का प्रोड ट लांच किया। और इस सबकेबाद भी टाइम बचा तो आपको इसी लोक में पाताल लोक की सैर भी करा दी जाती है। जब दिखाने को कुछ न हो तो सदाबहार 'आतंकवाद` तो है ही। यह ऐसा विषय है, जिसके कभी भी चला दो। एजेंसी से उठाई हुई ि लप को मिर्च-मसाला लगाकर ऐसे पेश किया जाता है, जैसे दुनिया की सबसे बड़ी खबर आज चैनल के हाथ लग गई हो। खबरों के नाम पर जो भाै़ंडा खेल चैनल वाले खेल रहे हैं, इसने रही-सही पत्रकारिता का भी सत्यानाश कर दिया है। चैलनों पर चलने वाली खबरों को देखकर कोफ्त होती है, सिर दर्द करने लगता है। आम शख्स आज न्यूज चैनलों केबारे में अपनी बेबाक रखता है तो उसकेमुख से कभी अच्छी बात नहींं निकलती। वैसे भी पत्रकारिता के इस पवित्र पेशे में कैसे-कैसे लोगों की गुसपैठ हो चुकी है, यह बात किसी से छुपी नहीं है।
ईमानदारी से सोचो सौ कराे़ड से ज्यादा आबादी वाले इस देश में या बारह घंटे की खबरें नहीं जुटाई जा सकती। चलो मान लिया आप चौबीस घंटे केन्यूज चैनल हैं, आपको हर व त कुछ न कुछ दिखाना है। लेकिन खबरों केनाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, या वह उचित है। बासी ही सही लेकिन खबरें तो दिखाओ। चैनल वालों को लग रहा है, लोगों को फूहड़ हंसी वाले शो दिखाकर वे भी वे अपनी टीआरपी बढ़ा रहे, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा।
Saturday, March 28, 2009
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