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bole to bindass
Wednesday, October 1, 2008
जख्म
तड़पता
जख्म
हूं
मैं
कोई मरहम नहीं
जानता हूं मैं
तुम्हें सब्र है जिसकी
वो उम्मीद हूं मैं
तुम्हें आस है जिसकी
वो तलाश हूं मैं
तेरे हाल से वाकिफ हूं मैं
मगर
मायूस
हूं
मैं
1 comment:
परमजीत सिहँ बाली
said...
बहुत बढिया रचना है बधाई।
October 1, 2008 at 8:15 AM
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Aditya k Musan
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1 comment:
बहुत बढिया रचना है बधाई।
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