वो खामोश आवाज
आज बोल उठी
कि कहो,
उस मौन में दबी
वो आहट
जो ली थी तुमने अभी
कुछ समय पहले
कि कहो!
जो मैं सुनना चाहती हूं
मैंने कहा...
अभी मैं सागर में डूबा नहीं
अभी मैं बच सकता हूं
अगर तुम कहो मैं वापस आ सकता हूं
उसने सुना और कहा
मैं समझी नहीं
मैं सुनना चाहती हूं
जो तुमने कहा पर मैने सुना नहीं
फिर मैं कुछ देर मौन रहा
एक आहट सी ली
और कहा सुनो
सुनना जो तुम चाहती हो
उसमें अभिव्यि त है मेरी
कुद सपने संझौती खुशियां हैं मेरी
या तुम उन्हें अपने पहलू में जगह दे सकती हो
मुझे अपना और खुद को मेरी कह सकती हो
एक हल्की सी आहट उसने भी ली
कुछ देर सन्नाटा रहा
फिर मैने कहा कि
अब तुम कहो
सुनना जो मैं चाहता हूं
उसने कुछ कहा
कुछ, बहुत कुछ कहा
मैने सुना
यकिन नहीं आता
या उसने वही कहा जो मैने सुना
विनोद के मुसान
Wednesday, October 1, 2008
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1 comment:
बहुत बढिया रचना है बधाई।
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